मुहोबत : ख्वाब या हकीक़त (ग़ज़ल )
ऐ खुदा ! तेरी दुनिया में मुहोबत बस एक खवाब है,
जिसका एक अफसाना किताबों के सिवा कहीं नहीं,
अश्कों को पोंछने वाले ,दर्द-ऐ-दिल मिटाने वाले ,
हकीक़त में होते हैं क्या ? हमने तो कभी देखा नहीं.
ख्वाबों में ही देखा की कोई आया हमें थामने ,
मगर जब आँख खुली तो पाया कोई भी नहीं.
तड़पकर रोये अपने ही दामन में मुंह छुपाकर,
क्या करें ! अश्क पोंछने को किसी का दामन जो नहीं.
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