सौदा (कविता)
आज फिर कहीं हुआ कोई हादसा ,
आज फिर कहीं किसी का दिल टुटा ,
किसी की कमर ,
किसी की लाठी टूटी ,
किसी की अंगुली छुटी ,
तो किसी का चश्मा पैरों तले कुचला गया।
आज फिर दिखा है सिसकियों का मंज़र ,
आंसुओं से भरी आँखें,
बुजुर्गों की ,
बच्चों की ,
पत्नी की ,
बहिन की ,
और नयी नवेली दुल्हन की आँखों में भी .
जो कर रहे थे इंतज़ार ,
अपनों के घर लौटने का ,
माँ को था बेटे का इंतज़ार ,
पत्नी को था पति का इंतज़ार ,
बहिन को था भाई का इंतज़ार ,
मगर अब !
सब कुछ ख़त्म .
अरे ! वह देखो !
कौन आ रहा है?
किसी मंत्री की गाड़ी है शायद ,
वोह लेकर आया है सूट -केस,
हरे -हरे नोटों से भरा हुआ .
और साथ ही कुछ ,ज़रा सी संवेदनाएं ,
ज़ाहिर करने को .
'' मुझे अफ़सोस है -----''
वही रटे -रटाये शब्द ,
वही भाव-भंगिमाएं ,
वही ज़रा सी मलहम से लिपटा स्वर ,
क्या यह सहानु भूति सच्ची है?
नहीं !
बिलकुल नहीं !
ज़रा कोई इनसे पूछे ,
ज़रा यह ही अपने ज़मीर से पूछे ,
क्या इनके पास हमारे सवालों के जवाब हैं ?
जी नहीं !
इनके पास है यह ढेर सारी राशियाँ ,
हादसे से ग्रस्त परिवारों के ज़ख्मों पर
मरहम का काम करने के लिए .
क्या यह इनके अपनों के इंतज़ार का फल है?
क्या यह इनके अपनों के लिए बहाए हुए आंसुओं ,
और टूटे हुए दिल से निकली आहों का प्रतिफल है?
जी नहीं !यह और कुछ नहीं ,
इन मंत्री जी के पास ,
शोक -संतप्त परिवारों को देने के लिए ,
कुछ है भी नहीं .
यह तो बल्कि कुछ लेने ही आये हैं,
अपने वोट -बैंक की खातिर ,
यह सौदा करने आये हैं .
मौत का सौदा !
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